1 अंतरिक्ष का वरदान नेहरु बाल पुस्तकालय अंतरिक्ष का वरदान मोहन सुंदर राजन नीता गंगोपाध्याय सुरेश उनियाल नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया 2 अंतरिक्ष का वरदान ISBN 81-237-0945-5 पहला संस्करण : 1983 बारहवीं आवृत्ति : 2001(शक 1922) मूल मोहन सुंदर राजन, 1983 हिंदी अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, 1983 A Comic Gift (Hindi) रु0 9.00 निदेशक, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, ए- 5 ग्रीन पार्क नयी दिल्ली- 110016 द्वारा प्रकाशित

भारत के दक्षिणी छोर के इंदिरा पॉइंट के तट से लगे हुए सागर तल पर एक भारतीय खोजी पनडुब्बी खोजबीन कर रही थी| कप्तान उत्तम और उसके दल के अन्य लोग पानी के भीतर की उस विचित्र दुनिया को बडे अचरज से देख रहे थे| इधर-उधर कई आकारों में मूंगों की चटटानें चमक रही थी और उनके भीतर कई किस्म की, रंग विरंगी मछलियॉ और अलौकिक आकारों वाले जीवन मंडरा रहें थे|

तभी एक कठोर आदेश सुनाई दिया| जो जहां हैं वही रुक जाये| नौसैनिक अभ्यास चल रहा है|

इंजन बंद कर दिये गये| सब कुछ शांत होकर ठहर गया| अचानक उत्तम को मूंगे की चटटानों के बीच में एक विचित्र सी चीज पडी हुई दिखाई दी| यह चिकनी सी चीज थी और आसपास की रंग-बिरंगी चीजों के बीच यह असामान्य से एक ही रंग की थी| यह किसी भी जीवित जंतु से नहीं मिलती थी| जिज्ञासु उत्तम ने उसे उठा लाने का आदेश दे दिया|

यह एक बडे आकार का उल्का पिंड था| उत्तम बहुत खुश हुआ| उसने ऐसी कोई चीज कभी पहले नहीं देखी थी- न समुद्र में और न जमीन पर| अंतरिक्ष यात्रा और पानी में रहने पर भी इस चीज का रंग और आकार नहीं बदला था|

4 अंतरिक्ष का वरदान ठहरे रहने की चेतावनी खत्म हो गयी थी| उत्तम ने ऊपर जाने का आदेश दिया| पहुंचते ही उसने अपने मित्र कावालूर बेधशाला क्षेत्र में स्थित तारामंडल स्कूल के प्रोफेसर मारुति को टेलीफोन किया और इस उल्का पिड के बारे में उन्हें बताया| प्रोफेसर मारुति बहुत उत्साह में आ गये थे| अब तक उन्होंने जितने भी उल्का पिंडों के बारे में सुना था, यह उन सबसे बडा था| इसका परीक्षण करने की अनुमति मिलते ही प्रोफेसर मारुति ने अंतरिक्ष के इस अवशेष पर परीक्षण करना शुरु कर दिया|

5 इस पर जमी बाहरी तहों को उतारने के बाद एक स्पष्ट आकृति सामने आयी जो 10101 जैसे दिख रही थी| प्रोफेसर ने बताया कि यह 21 का दिवचर प्रणाली का रुप है| और 21 का अर्थ अंतरिक्ष में हाइड्रोजन की 21 सेंटीमीटर रेडियों आवृत्ति है|

कही यह बाह्रय अंतरिक्ष के किसी समझदार प्राणी का संदेश तो नहीं है|

कई वर्षो से पृथ्वी के वैज्ञानिक सांकेतिक प्राथमिक गणितीय संदेशों को इस आशा के साथ बाहर भेजते हैं कि उन्हें कोई ग्रहण करेगा| पर अभी तक तो कोई जवाब नहीं मिला था| क्या यह कोई जवाब हो सकता है?

6 अंतरिक्ष का वरदान उल्कापिंड से प्राप्त संदेश इस उल्कापिंड और इसके दिवचर संदेश की खबर पूरी दुनिया के रेडियो स्टेशनों से प्रसारित हो गयी| अमरीकियों ने घोषणा की कि वे एक विशेष अंतरिक्ष यान बनायेगें और इसे बाह्रय अंतरिक्ष के उस क्षेत्र की खोज के लिए भेजेंगे जहॉ नये जीव का अभ्युदय हुआ है| दूसरी ओर रुसी लोग सावधानी से ही कोई कदम उठाना चाहते थे और तब तक प्रतीक्षा करना चाहते थे जब तक कि दिवचर प्रणाली से ही, उनसे पूरी तरह संपर्क नही कर लिया जाता|

बहुत से टेलीग्राम इस बात की वकालत कर रहे थे कि किसी भी तरह के संचार को रोक दिया जाये, कहीं ऐसा न हो कि वह दूसरी सम्यता हमारी प्रौद्योगिकी को अभी आदिमकालीन ही समझ् रही हो| कुछ और लोगों का तर्क था कि जो सभ्यता इतने समय तक जीवित कर सकती हैं, उसके इरादों के बुरे होने की संभावना कम ही लगती है| इसके साथ संपर्क खतरनाक सिद्व नहीं होगा बल्कि लाभकारी ही हो सकता है| प्रोफेसर मारुति बाह्रय अंतरिक्ष में भेजने के लिए संदेश तैयार करने में लग गये| उन्होंनें संदेश का संकेत करने की एक ऐसी प्रणाली तैयार की जो निस्संदेह समझ्दार प्राणियों द्वारा भेजी गयी ही मानी जायेगी| उन्होंने कहा कि विकिरण की ‘ऑन-आफ’ के एक अनुक्रम द्वारा संदेश भेजा जा सकता 7 है| तरंग का अर्थ होगा एक और न होने का अर्थ होगा शून्य| इस प्रकार दिवचर श्रेणी की संख्याओं को प्रेषित किया जा सकता हैं| फिर, ये संख्याऍ पहली बारह रुढ संख्याऍ भी हो सकती है- 1,2,3,5,7,11,13,17,19,23,29,31 यह सामान्य गणितीय ज्ञान की ओर इंगित करेगा जो सिर्फ 8 अंतरिक्ष का वरदान समझदार प्राणियों की ओर से ही आ सकता हैं एक स्पष्ट विवरण देने के लिए इस प्रकार के संदश को क्रमबद्व करने की प्रणाली भी तैयार की जा सकती है| 19 वर्गो के 29 समूहों के विन्यास से–मसलन ईकाईयो को काला और शून्यो को सफेद करके- एक दिलचस्प चित्र बनाया जा सकता हैं जो मानव अस्तित्व के भौतिक स्वरुप, सौर प्रणाली की कार्यविधि तथा अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रकट कर सकता है|

तभी आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की ओर से एक संदेश मिला| जीव रसायन विभाग के अध्यक्ष डाक्टर धनवंतरी कह रहे थे|